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समाज धर्म एवं दर्शन पत्रिका का पंजीकरण, नामकरण एवं प्रकाशन सन् 1983 में आरम्भ हुआ। प्रकाशन का प्रयोजन हिन्दी भाषा के माध्यम से दर्शन, समाजविज्ञान, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद तथा ज्योतिष आदि विद्याओं के सन्दर्भ में ज्ञानवर्धक लेखों का प्रकाशन था। मुख्य रूप से प्राच्य विद्या के उत्तम अंशों को प्रकट करना हमारा उद्देश्य रहा, यद्यपि पाश्चात्य ज्ञान और विज्ञान का तिरस्कार कभी मन में नही आया। आरम्भिक वर्षों में पत्रिका त्रैमासिक रूप में प्रकाशित हुई किन्तु कालान्तर में छमाही और वार्षिक प्रकाशन भी हुए है। इन परिवर्तनों के अनेक कारण रहे किन्तु क्रम कभी भी भंग नही हुआ, विलंब भले हुआ हो किन्तु निरन्तरता बनी हुई है। प्रवेशांक का आरम्भ वीर रस के यशस्वी कवि श्री श्यामनारायण पाण्डेय द्वारा लिखित वन्दना से हुआ। आरम्भिक अंको में पद्मभूषण राजाराम शास्त्री, पद्मभूषण पट्टाभिराम शास्त्री, पद्मभूषण बलदेव उपाध्याय, अभिनव पाणिनि के नाम से विख्यात आचार्य रामप्रसाद त्रिपाठी तथा इस युग के धन्वन्तरि के रूप में विख्यात वैद्यराज यदुनन्दन उपाध्याय सदृश वरिष्ठ आचार्यों के ज्ञानवर्धक लेख प्रकाशित किए गये। दर्शन, साहित्य, व्याकरण, इतिहास से जुड़े अनेक आचार्यों के लेख निरन्तर प्रकाशित हो रहे है। पत्रिका के प्रकाशन का संकल्प श्री भुवनेश्वरी विद्या प्रतिष्ठान की कार्यकारिणी ने 1983 में किया था। अनेक शैक्षणिक कार्यकलापों के साथ अच्छे साहित्य का सृजन प्रतिष्ठान का उद्देश्य है। आज तक पत्रिका एवं सद्ग्रंथो के प्रकाशन द्वारा प्रतिष्ठान अपने सीमित संसाधनो से प्रयोजन की सिद्धि करता है। किसी भी प्रकार का आर्थिक आधार न होते हुए भी पवित्र संकल्प सिद्ध होते है। यह बात प्रतिष्ठान के कार्यक्रमों की पूर्णता से सिद्ध होती है। पत्रिका की जीवन यात्रा लेटरप्रेस से आरम्भ होकर कम्प्यूटर प्रेस से होती हुयी डिजिटल प्रकाशन तक पहुँच गई है, यह सोचकर दीर्घ इतिहास और प्रकाशकीय क्रान्ति से मन आह्लादित होता है।

                                                                                    "सम्पादक"

                                                                                  प्रो. जटाशंकर